रेवदर (सिरोही)। श्रीगोधाम महातीर्थ पथमेड़ा की शाखा श्री मनोरमा गोलोक नंदगांव केसुआं में चल रहे श्री गो गोवर्धन कृपा चातुर्मास आराधना महोत्सव के अंतर्गत सोमवार को श्री गोपेश्वर कावड़ यात्रा का अत्यंत भव्य स्वागत के साथ आध्यात्मिक वातावरण में समापन हुआ।
परम पूज्य गोऋषि स्वामी श्री दत्तशरणानंदजी महाराज की दिव्य उपस्थिति में आयोजित इस पुण्य अवसर पर सैकड़ों श्रद्धालुजन भक्ति भाव से सहभागी बने। महाराजश्री ने अपने प्रवचन में कहा कि गोपेश्वर कावड़ यात्रा मात्र एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि यह आत्मशुद्धि, गोसेवा तथा सनातन संस्कृति के आदर्श मूल्यों की पुनर्स्थापना का सशक्त माध्यम है।
उन्होंने कहा कि श्री कामधेनु कोटितीर्थ से लाया गया पवित्र जल ब्रजभूमि की कृपा का प्रतीक है, जो साधक के भीतर भक्ति, समर्पण और गोप्रेम की भावनाओं को प्रज्वलित करता है।
श्री गोधाम महातीर्थ पथमेड़ा के केन्द्रीय संयोजक गोसंत श्री नंदरामदासजी महाराज ने बताया कि इस यात्रा दिनांक 1 अगस्त को संत श्री महादेवानंदजी सरस्वती एवं गोवत्स श्री विठ्ठलकृष्णजी के मार्गदर्शन में श्री कामधेनु कोटितीर्थ से आरंभ हुई थी। श्रद्धालुजनों ने कंधों पर कांवड़ रखकर पवित्र जल के साथ भक्तिभाव से भरे गीत-संगीत, भजन-कीर्तन और मंगलघोष के बीच नंदगांव स्थित मनोरमा गोलोकतीर्थ की ओर यात्रा की। मार्गभर ग्रामीणों और भक्तों ने जगह-जगह पुष्पवर्षा, भजन-नृत्य तथा आत्मीय स्वागत के साथ यात्रा का अभिनंदन किया।
यात्रा की पूर्णाहुति पर आज श्रीगोधाम परिसर में स्थापित पारद शिवलिंग – श्री गोपेश्वर भगवान का पवित्र जल से वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ विधिपूर्वक अभिषेक संपन्न हुआ। जैसे ही अभिषेक की प्रक्रिया आरंभ हुई, सम्पूर्ण परिसर “हर हर महादेव” और “गोमाता की जय” के ओजपूर्ण जयकारों से गूंज उठा।
यह दिव्य दृश्य उपस्थित श्रद्धालुओं के लिए गहन आध्यात्मिक अनुभूति का क्षण बना। भावविभोर भक्तों की आंखों में आस्था के अश्रु थे, और हृदय में गोसेवा एवं शिवभक्ति की अखंड लौ जल रही थी।
इस अवसर पर पुज्य दयानन्दजी शास्त्री, रविन्द्रानंदजी सरस्वती, श्री अरूपानंदजी महाराज, धनराज चौधरी, यशपाल गुप्ता, देवेन्द्र जैन, प्रवीण पुरोहित, केवलाराम पुरोहित, आलोक सिंहल सीईओ, हुकमसिंह सहित संत, सेवकगण और ग्रामीण श्रद्धालुओं ने इस आयोजन को सनातन संस्कृति का जाग्रत स्वरूप बताया। श्री गो गोवर्धन कृपा चातुर्मास महोत्सव के अंतर्गत ऐसे धार्मिक आयोजनों का उद्देश्य समाज में धर्म, सेवा और सुसंस्कारों की पुनर्स्थापना है।

